नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है नौ रातें।
नौ रातों और दस दिनों के दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। न केवल देवी दुर्गा, अपितु देवी सरस्वती अथवा देवी महालक्ष्मी जी की भी स्तुति की जाती है। दुर्गा का शाब्दिक अर्थ, सर्व दुखों का नाश करने वाली होती है। सम्पूर्ण भारतवर्ष मे इसे महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
1 शैलपुत्री – इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
2 ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
3 चंद्रघंटा – इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
4 कूष्माण्डा – इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
5 स्कंदमाता – इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
6 कात्यायनी – इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
7 कालरात्रि – इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
8 महागौरी – इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
9 सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
दुर्गा महाशक्ति का पर्व सनातन काल से मनाया जा रहा है। ऐसा माना जाता है की सर्वप्रथम भगवान श्री रामचंद्र जी ने शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुन्द्र तट पर किया था। उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया था।
असत्य पर सत्य की विजय सर्व विदित है की किस प्रकार भगवान श्री राम ने असत्य पर सत्य की विजय हासिल की और तभी से दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्रि के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्या अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।
देवी काली और दुर्गा सभी दुखों को दूर करने वाली और सब सुख प्रदान करने वाली है। नवरात्री के हर एक दिन अलग तरीके से पूजा करके देवी माता, आदिशक्ति की आराधना कर इन्हें खुश किया जाता है, फलस्वरूप जीवन में खुशिओं का संचार हो, हर प्रकार की नकारात्मक भावों से छुटकारा मिलता है।
देवी माता अपने भक्तों पर सहज ही रीझ जाती है। माता का अटूट प्यार, दुलार और स्नेह आशीर्वाद के रूप में मिलता रहता है। जिसके साधक को किसी अन्य सहायता की जरुरत नहीं पढ़ती और वह सर्वशक्तिमान हो जाता है। माँ की करुणा अपार है जिसका कोई अंत नहीं है।
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