सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा जी ने इंसान के साथ मिलकर की यज्ञ की रचना की थी। अग्नि को परमात्मा का मुख/मुँह माना गया है इसलिए इसमें आहुतियां दी जाती है क्योंकि आहुति भगवान का भोजन है।
यज्ञ का दूसरा नाम अग्नि पूजा है। यज्ञ से देवताओं को प्रसन्न किया जा सकता है साथ ही मनचाहा फल भी प्राप्त किया जा सकता है। ब्रह्मा ने मनुष्य के साथ ही यज्ञ की भी रचना की और मनुष्य से कहा इस यज्ञ के द्वारा ही तुम्हारी उन्नति होगी। यज्ञ तुम्हारी इच्छित कामनाओं, आवश्यकताओं को पूर्ण करेगा। तुम यज्ञ के द्वारा देवताओं को पुष्ट करो, वे तुम्हारी उन्नति करेंगे।
धर्म ग्रंथों में अग्नि को ईश्वर का मुख/मुँह माना गया है। इसमें जो कुछ खिलाया (आहूति) जाता है, वास्तव में ब्रह्मभोज है। यज्ञ के मुख में आहूति डालना, परमात्मा को भोजन कराना है। नि:संदेह यज्ञ में देवताओं की आवभगत होती है। धर्म ग्रंथों में यज्ञ की महिमा खूब गाई गई है। वेद में भी यज्ञ का विषय प्रमुख है। यज्ञ से भगवान प्रसन्न होते हैं।
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