शास्त्रों में वर्णन है कि संकल्प मात्र से आप पूजा, कथा, हवन/यज्ञ आदि का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आप उस पूजा, कथा, हवन/यज्ञ में शामिल हो। आवश्यक है तो आपका संकल्प।
शास्त्रों के अनुसार संकल्प लेने का अर्थ है कि इष्टदेव और स्वयं को साक्षी मानकर संकल्प लें कि हम यह पूजन कार्य विभिन्न इच्छाओं की कामना पूर्ति के लिए कर रहे हैं/करा रहे हैं और इस पूजन को पूर्ण अवश्य करेंगे।
संकल्प लेते समय हाथ में जल, चावल और फूल लिए जाते हैं, क्योंकि इस पूरी सृष्टि के पंचमहाभूतों (अग्रि, पृथ्वी, आकाश, वायु और जल) में भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति हैं। अत: श्रीगणेश को सामने रखकर संकल्प लिया जाता है। ताकि श्रीगणेश की कृपा से पूजन कर्म बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाते हैं।
एक बार पूजन का संकल्प लेने के बाद उस पूजा को पूरा करना आवश्यक होता है। इस परंपरा से हमारी संकल्प शक्ति मजबूत होती है। भगवान व्यक्ति को विपरित परिस्थितियों का सामना करने का साहस प्रदान करते हैं।
शास्त्रों में वर्णन है कि संकल्प मात्र से आप पूजा, कथा, हवन/यज्ञ आदि का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आप उस पूजा, कथा, हवन/यज्ञ में शामिल हो। आवश्यक है तो आपका संकल्प।
शास्त्रों के अनुसार संकल्प लेने का अर्थ है कि इष्टदेव और स्वयं को साक्षी मानकर संकल्प लें कि हम यह पूजन कार्य विभिन्न इच्छाओं की कामना पूर्ति के लिए कर रहे हैं/करा रहे हैं और इस पूजन को पूर्ण अवश्य करेंगे।
संकल्प लेते समय हाथ में जल, चावल और फूल लिए जाते हैं, क्योंकि इस पूरी सृष्टि के पंचमहाभूतों (अग्रि, पृथ्वी, आकाश, वायु और जल) में भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति हैं। अत: श्रीगणेश को सामने रखकर संकल्प लिया जाता है। ताकि श्रीगणेश की कृपा से पूजन कर्म बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाते हैं।
एक बार पूजन का संकल्प लेने के बाद उस पूजा को पूरा करना आवश्यक होता है। इस परंपरा से हमारी संकल्प शक्ति मजबूत होती है। भगवान व्यक्ति को विपरित परिस्थितियों का सामना करने का साहस प्रदान करते हैं।
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