जब हम भगवान को खाघ पदार्थ अर्पण करते है तो वह "भोग या नैवेध" कहलाता है और भगवान के ग्रहण करने के बाद वह "प्रसाद" बन जाता है। प्रसाद चाहे सूखा हो, बासी हो, अथवा दूर देश-विदेश से लाया हुआ हो, उसे पाते ही खा लेना चाहिये। उसमे काल के विचार करने की आवश्यकता नहीं है, महा प्रसाद में काल या देश का नियम नहीं है।
जिस समय भी महा प्रसाद मिल जाये, उसे वही उसी समय पाते ही जल्दी से खा ले, ऐसा भगवान ने साक्षात् अपने श्री मुख से कहा है। कभी भी प्रसाद का निरादर नहीं करना चाहिये और ना ही लेने से मना करना चाहिये। भगवान का प्रसाद ग्रहण करने से आपके सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं।
स्वयं भगवान ने कहा है -
"पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:"
जो कोई भक्त मेरे लिये प्रेम से पत्र (पत्ती), पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ, वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ... जब श्रद्धा रूपी पत्र हो, सुमन अर्थात फूल, हमारा अच्छा मन ही सुमन है, फल अर्थात अपने कर्म फल और जल अर्थात भाव में नैनो से बहें हुए, दो बूंद आँसू हो, इसे ही भगवान ग्रहण करते है।
तो आईये हम भी अपने अपने इष्ट को उनका मन पसंद नैवेध अर्पण करे और उनका आशीर्वाद प्राप्त करे।
Copyright © Jai Ho India, All Rights Reserved.