कवच का अर्थ होता है रक्षा करने वाला, अपने चारों ओर एक प्रकार का आवरण बना देना। संसार में जितने भी कवच है, उन सभी कवचों में “देवी/दुर्गा कवच” समस्त प्रकार से सुरक्षा प्रदान करने वाला माना गया है।
अठारह प्रमुख पुराणों में से एक मार्कंडेय पुराण के अंदर देवी कवच (दुर्गा कवच) के श्लोक अंतर्भूत है और यह अद्भुत दुर्गा सप्तशती का हिस्सा है। देवी कवच को भगवान ब्रह्मा ने ऋषि मार्कंडेय को सुनाया और इसमें 47 श्लोक शामिल है इसके बाद 9 श्लोकों में फलश्रुति लिखित है। फलश्रुति का मतलब है, इसको सुनने या पढ़ने से क्या फल प्राप्त होता है यह बताया गया है । इसमें भगवान ब्रह्मा देवी पार्वती माँ की नौ अलग-अलग दैवीय रूपों में प्रशंसा करते हैं। भगवान ब्रह्मा प्रत्येक को देवी कवच को पढ़ने और देवी माँ का आशीर्वाद मांगने के लिए अनुरोध करते हैं।
किसी तीर्थ स्थान पर पावन पर्व के अवसर पर देवी कवच (दुर्गा कवच) पाठ करने से मां दुर्गा अपने भक्तों की सभी बाधाओं को दूर करती हैं, इतना ही नहीं, देवी भक्तों को यश और कीर्ति भी देती हैं।
जो भक्त समय-समय पर देवी कवच का पाठ करता या करवाता है उसके जीवन में कभी संकट नहीं आ सकते, मां भगवती स्वयं उसे हर संकट से बचाती है।
दुर्गा कवच अत्यन्त ही दुर्लभ है, इसके कवच के पाठ करने से माँ भगवती स्वयं अपने अस्त्र-शस्त्रों से साधक के सभी अंगों की रक्षा करती है, उसके मार्ग की, उसके कुल की रक्षा कर उसे पूर्ण लक्ष्मी प्रदान करती है, ताकि भक्त पूर्ण सुरक्षित रहे, भय रहित रहे, किसी भी विपत्तिपूर्ण स्तिथि में, संकट में, यह कवच अमोघ सुरक्षा प्रदान करने वाला माना गया है। इसका अनुष्ठान समय-समय पर हमारे लिए बहुत जरूरी है।
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