यज्ञ का महत्व

यज्ञ का महत्व
हवन/यज्ञ क्या है?

अपने जीवन को उजले कर्मों से और चमकाने का संकल्प, अपने सभी पाप, छल, झूठ, विफलता, रोग, दुर्भाग्य आदि को इस दिव्य अग्नि में जला डालने का संकल्प।

हर बार एक नई उड़ान भरने का संकल्प,

उस ईश्वर रूपी अग्नि में खुद को आहुति बनाके उसका हो जाने का संकल्प, उस दिव्य लौ में अपनी लौ लगाने का संकल्प और इस संसार के दुखों से छूट कर अग्नि के समान ऊपर उठ मुक्त होने का संकल्प! हवन मेरी सफलता का आर्ग है. हवन मेरी मुक्ति का मार्ग है, ईश्वर से मिलाने का मार्ग है.

हवन / यज्ञ/ अग्निहोत्र मनुष्यों के साथ सदा से चला आया है। हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान पर विराजमान यह हवन/यज्ञ।

हवन क्यों इतना पवित्र है? क्यों यज्ञ करना न सिर्फ हर इंसान का अधिकार है बल्कि कर्त्तव्य भी है?

हिंदू धर्म में सर्वोपरि पूजनीय वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञ/हवन की क्या महिमा है, उसकी कुछ झलक इन मन्त्रों में मिलती है-

  • अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्. होतारं रत्नधातमम् [ ऋग्वेद १/१/१/]
  • समिधाग्निं दुवस्यत घृतैः बोधयतातिथिं. आस्मिन् हव्या जुहोतन. [यजुर्वेद 3/1]
  • अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुवे. [यजुर्वेद 22/17]
  • सायंसायं गृहपतिर्नो अग्निः प्रातः प्रातः सौमनस्य दाता. [अथर्ववेद 19/7/3]
  • प्रातः प्रातः गृहपतिर्नो अग्निः सायं सायं सौमनस्य दाता. [अथर्ववेद 19/7/4]
  • तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः [यजुर्वेद 31/9]
  • अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तोधि ब्रुवन्तु तेवन्त्वस्मान [यजुर्वेद 19/58]
  • यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म [शतपथ ब्राह्मण 1/7/1/5]
  • यज्ञो हि श्रेष्ठतमं कर्म [तैत्तिरीय 3/2/1/4]
  • यज्ञो अपि तस्यै जनतायै कल्पते, यत्रैवं विद्वान होता भवति [ऐतरेय ब्राह्मण १/२/१]
  • यदैवतः स यज्ञो वा यज्याङ्गं वा.. [निरुक्त ७/४]

इन सभी मन्त्रों का निचोड़ यह है कि ईश्वर मनुष्यों को आदेश करता है कि हवन/यज्ञ संसार का सर्वोत्तम कर्म है, पवित्र कर्म है जिसके करने से सुख ही सुख बरसता है।

यही नहीं, भगवान श्रीराम को रामायण में स्थान स्थान पर ‘यज्ञ करने वाला’कहा गया है। महाभारत में श्रीकृष्ण सब कुछ छोड़ सकते हैं पर हवन नहीं छोड़ सकते। हस्तिनापुर जाने के लिए अपने रथ पर निकल पड़ते हैं, रास्ते में शाम होती है तो रथ रोक कर हवन करते हैं। अगले दिन कौरवों की राजसभा में हुंकार भरने से पहले अपनी कुटी में हवन करते हैं। अभिमन्यु के बलिदान जैसी भीषण घटना होने पर भी सबको साथ लेकर पहले यज्ञ करते हैं। श्रीकृष्ण के जीवन का एक एक क्षण जैसे आने वाले युगों को यह सन्देश दे रहा था कि चाहे कुछ हो जाए, यज्ञ करना कभी न छोड़ना।

जिस कर्म को भगवान स्वयं श्रेष्ठतम कर्म कहकर करने का आदेश दें, वो कर्म कर्म नहीं धर्म है। उसका न करना अधर्म है।